पहले समय में पांच साल तक बच्चे
को Azadi थी,तब खेलना, घूमना, आनंद,
मस्ती करना, दादा दादी से
कहानियों सुनना, माँ-बाप के साथ ही समय
निकालते थे।
नतीजा :-प्यार, विश्वास, संस्कार, दया, धर्म
का ग्यान होना।
आज के समय में बच्चे को खेलने
का मौका नहीं मिलता, सिर्फ नर्सरी,
होमवर्क, ट्यूशन और अंग्रेजी का अत्याचार।
नतीजा -: बच्चों को दिमांगी "बाल
मजदूरी "की सजा, बच्चे का गुस्से
वाला चिड़चिड़ा स्वभाव, बडा होकर
एकेला रहना,धर्म का ग्यान न होने से माँ-बाप
को वृद्धाश्रम में भेजना, भ्रष्टाचारी,
स्वार्थी, निर्दयी और अधर्मी और पापी होने
की संभावना।
"बालक फूल के समान हैं, उसे ताप की नहीं,
पानी के छींटे की जरूरत होती हैं "
"संस्कार, धर्म और योग्यता का महत्व मेरिट से
ज्यादा है "
जैसे संस्कार वैसा जीवन
आप कभी वृद्धाश्रम जाये तो पूछना कि,आप
का बेटा क्या करता है, तो उत्तर
मिलेंगा मेरा बेटा डॉक्टर हैं, कोई अंजीनियर
कहेगा, कोई बिजनेस मेन कहेगा,
क्योंकि गरीब, अनपढ़ और किसान
का बेटा कभी मां-बाप को वृद्धाश्रम
नहीं भेजता।
"आज वृद्धाश्रम में वेटिंग चल रहा है, यह
तो भारतीय संस्कृति नहीं है! "
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