कवि राकेश पूठर ने सब्र के फल को कविता के जरिए कितनी खूबसूरती से समझाया है,

आइए पढ़ते है:-

सोच समझकर मैंने सब्र का पेङ लगाया था,
सब्र का फल मीठा होता है किसी ने मुझे बताया था,
लगाया पेङ तो सावन के काले बादल छा गए,
पेङ हुआ बङा तो देखा पत्तो से पहले काँटे आ गए,
फल आएँगे फल आएँगे रोज इसी आस मे सोता,
जब आए फल तो देखा, मुझसे पहले खा रहा था तोता,

फिर तोते खुब उङाए हमने खूब किया इंतजार,
फल पक के नीचे गिरा  तो उसमे पाए किङे चार,
फल खाने की इच्छा दिल की दिल मे रह गई,
सारी मेहनत सारी खुशियाँ एक पल मैं ढह गई,
गुस्से मे होकर लाल बात मैं सोच रहा था कहनी,
आई आँधी पेङ उङा ले गई बची तो सिर्फ एक टहनी,

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उस टहनी से मैंने इक सुंदर सी कलम बनाई,
लिख के कविता उसी कलम से,  सबको मैंने सुनाई,
सुनकर कविता सभी लोगों को मजा आ रहा था,
वो तालियाँ बजा रहे थे में सब्र का फल खा रहा था।

तो दोस्तो जैसा कवि ने कविता के जरिए बताया कि मेहनत का फल सभी को एक ना एक दिन जरूर मिलता है वैसे भी बङे बुजुर्ग कहते है भगवान के घर देर है पर अंधेर नही। हमे जीवन मे हमेशा मेहनत करते रहना चाहिए।।

हर आदमी वैसा है काटता जैसा बोता  हैं,
 सब्र का फल बहुत मीठा होता है।


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