आजकल लोग अपने नाम के पीछे शर्मा,वर्मा, अरोड़ा, अलग अलग तरह के सरनेम लगाते है इसलिए संत गुरमीत राम रहीम जी इंसा ने ये सब हटाकर इंसा बनाया।


संत राम रहीम सिंह जी ने अपने अनुयायियों के नाम के पीछे "इंसा" शब्द कई कारणों से लगवाया था।

1. समानता का संदेश:

यह माना जाता है कि राम रहीम जी जाति, धर्म, या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे। "इंसा" शब्द का अर्थ "मनुष्य" होता है, और इसे सभी अनुयायियों को एक समान मंच पर लाने के प्रयास के रूप में देखा जाता था।

2. विनम्रता का प्रतीक:

"इंसा" शब्द को विनम्रता और नम्रता का प्रतीक भी माना जाता है। राम रहीम जी अपने अनुयायियों को अहंकार से दूर रहने और विनम्र रहने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

3. एकता का भाव:

"इंसा" शब्द का उपयोग एक समुदाय की भावना और एकता को बढ़ावा देने के लिए भी किया जाता था। राम रहीम जी चाहते थे कि उनके अनुयायी एक दूसरे के साथ भाईचारे और प्रेम भाव से रहें।

4. आत्म-साक्षात्कार का प्रतीक:

कुछ लोगों का मानना ​​है कि "इंसा" शब्द का उपयोग आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक जागरूकता के प्रतीक के रूप में भी किया जाता था। राम रहीम जी अपने अनुयायियों को अपनी वास्तविक प्रकृति को समझने और आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि "इंसा" शब्द के उपयोग के पीछे राम रहीम जी की मंशा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। विभिन्न अनुयायियों की इसके अर्थ को लेकर अपनी अपनी समझ हो सकती है।

कुछ अतिरिक्त बिंदु:

  • राम रहीम जी ने अपने नाम के पीछे भी "इंसा" शब्द का उपयोग किया था।
  • डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों को अक्सर "इंसान" के रूप में जाना जाता है।
  • "इंसा" शब्द का उपयोग कभी-कभी डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी पहचान को दर्शाने के लिए किया जाता है।


क्यों बनाया इंसा: - डेरा सच्चा सौदा सिरसा से जुड़े लोग तथा  रूहानी जाम पीने वाले अपने उपनाम पर जोर देने की बजाए अपने नाम के पीछे 'इन्सां' लिखे ताकि समाज में व्याप्त जात - पात धर्म, ऊंच - नीच की भयानक बुराई को जड़ से खत्म किया जा सके।  क्योंकि जब सब लोग 'इन्सां' और केवल 'इन्सां' होंगे तो समाज से जात पात की बुराई को खत्म करने में मदद मिलेगी।  पूज्य गुरु जी ने इन्सान के अंदर की मरी हुई इन्सानियत, इन्सान का ज़मीर, उसकी आत्मा की आवाज़ ’को को जानने के लिए ही 'रूहानी जाम’ नाम का रूहानी टॉनिक प्रदान किया है।  वैसे तो बाहरी तौर पर देखें तो यह टॉनिक दूध + चीनी + शरबत ए - रूह (रूह आफजा शरबत) का मिश्रण है।  पूज्य गुरू जी की अपार रहमतों, रूहानी बरकतों का भण्डार है यह 'जाम ए - इन्सा गुरू का', लेकिन हासिल वे ही जीव करते हैं जो रूहानी जाम को सच्ची श्रद्धा - भावना - पीते हैं।  दूसरी बात यह भी अति आवश्यक है कि रूहानी जाम पीने के लिए इसकी प्रारम्भिक परिक्रिया को पूरा करना भी आवश्यक है और रूहानी जाम पीने के बाद ' सर्व धर्म एकता ' का नारा हम सब एक हमारा एक , हमारा मालिक एक , तीनों गुरुओं से जुड़ा हुआ लॉकेट ज़रूर पहने और अपने आप को इंसा लिखे।
जहां पूज्य गुरू जी के इन वचनों को मानने से इंसान पूरी खुशियों का हकदार इन्सान बन जाता है, वहीं सामाजिक स्तर पर धर्म - जाति के भेदभाव को जल्द खत्म किया जा सकेगा।  कोई भी बुराई हो, चाहे वह इन्सान के खुद के अंदर की बुराइयां है।  या समाज में फैली कुरीतियों के रूप में हैं, बुराई कभी अपने - आप नहीं छूटा करता है, बल्कि हर युग में संत - महापुरुष ही हमेशा सहारा बनते आए हैं।  युग के अनुरूप, जैसा युग होता है, उसी तरीके से समाज में आसानी से बदलाव लाया जा सकता है, संत , सतगुरु वैसे ही कार्य, वैसे ही नियम बताकर लोगों को उस पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।  पूज्य गरु जी ने 'रूहानी जाम' 29 अप्रैल 2007 को शुरू किया है, और इसके साथ - साथ 47 नियम।  बनाए गए हैं, जिनको मानने से जहां इन्सान को सांसारिक कार्यों और रूहानियत में फायदा पहुंचता है |  वहीं इन्सानियत के नाते पूरे समाज में भी भारी सुधार हो सकता है।  इसलिए पूज्य गुरू जी ने कहा।  अपने रूहानी जाम के द्वारा लोगों को 'इन्सां' बनाया - है, ताकि इन्सानियत के नियमों पर चलते हुए वे भेदभाव मिटा सके दुनिया का।


सभी इस पोस्ट के लिंक को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि सभी लोगो का ज्ञान बढ़ सके ऐसी ज्ञानवर्धक पोस्ट पढ़ने के लिए हर रोज टाइप कीजिए SachEducation.com



जानकारी कैसी लगी यहां लिखिए

और नया पुराने